फ़िल्म पद्मावती विवाद: परदे के पीछे का सच...!
संजय लीला भंसाली
की
फ़िल्म
पद्मावती
घोषणा
के
साथ
ही
विवादों
में
घिर
गयी
थी
और
जैसे-जैसे
फ़िल्म
के
रिलीज़
की
तारीख़
नज़दीक
आ
रही
है,
इस
फ़िल्म
पर
विवाद
ओर
भी
उग्र
होता
जा
रहा
है.
लेकिन
जिस
तरह
से
इस
फ़िल्म
पर
बेहस
हो
रही
है,
एक
तरफ
भंसाली
को
पूरी
फ़िल्म
इंडस्ट्री
का
समर्थन
मिल
रहा
है
तो
दूसरी
तरफ़
राजपूत
समाज
के साथ भी
बहुत
सारे
हिन्दू
संगठन
जुड़
गए
है.
इस
मामले
में
वामपंथियों
की
बिना
सोचे
समझे
की
गयी
टिप्णियो
ने
भी
इस
मुद्दे
में
आग
में
घी
डालने
का
काम
किया
है.
अगर इस पुरे मामले
में
दोषी
संजय
लीला
भंसाली
को
ठहराया
जाये
तो
गलत
नहीं
होगा?
पढ़िए
ये
ख़ास
रिपोर्ट
कि
किस
तरह
भंसाली
की
गलतियों
की
वजह
से
पुरे
देश
में
बवाल
मच
गया?
परदे के पीछे का
सच
बाजीराव-मस्तानी की
सफ़लता
के
बाद
संजय
लीला
भंसाली
ने
चित्तौड़
की
महारानी
महासती
पद्मिनी
पर
फ़िल्म
पद्मावती
बनाने
की
घोषणा
की.
चूँकि
दीपिका
पादुकोणे
और
रणवीर
सिंह
के
साथ
भंसाली
की
पिछली
दो
फ़िल्मे
बॉक्स
ऑफिस
पर
हिट
साबित
हुयी,
इसलिए
भंसाली
ने
दोनों
ही
कलाकारों
को
एक
बार
फिर
अपनी
नयी
फ़िल्म
में
कास्ट
किया.
कहानी में तीन मुख्य
किरदार
है
महारानी
पद्मावती,
महाराणा
रावल
रतन
सिंह
और
अल्लुद्दीन
ख़िलजी. रणवीर और
दीपिका
को
पहले
ही
साइन
किया
जा
चूका
था
और
तीसरे
किरदार
को
निभाने
के
लिए
शाहिद
कपूर
को
लिया
गया.
गलती-1 रणवीर,
भंसाली
और
शाहिद
दो फ़िल्मे करने के
बाद
रणवीर
सिंह
ओर
भंसाली
के
रिश्ते
मज़बूत
हो
गए
थे,
जबकि
शाहिद,
भंसाली
के
साथ
पहली
बार
काम
करने
जा
रहे
थे.
इसीलिए
भंसाली
ने
किरदार
चुनने
के
लिए
रणवीर
को
प्राथमिकता
दी.
रणवीर
को
शुरू
से
ही
शाहिद
का
फ़िल्म
में
होना
रास
नहीं
आ
रहा
था,
इसलिए
उन्होंने
ना
सिर्फ़
शाहिद
के
बराबर
फीस
मांगी
बल्कि
उनके
किरदार
को
भी
दमदार
रखने
की
मांग
की.
रणवीर
को
ख़िलजी
का
रोल
ज्यादा
दिलचस्प
लगा
और
इससे
पहले
उन्होंने कभी नकारात्मक
भूमिका
नहीं
निभाई
थी.
कुछ
अलग
करने,
अवार्ड्स
जीतने
की
लालसा
ने
उन्हें
ख़िलजी
के
रोले
की
तरफ़
आकर्षित
किया.
अब
फ़िल्म
में
जोड़ी
बनी
दीपिका
और
शाहिद
की
वहीँ
नेगेटिव
रोल में
पहली
बार
दिखने
जा
रहे
थे
रणवीर.
दो सुपरहिट फ़िल्म्स
और
अफेयर्स
की
चर्चाओं
ने
रणवीर
दीपिका
की
जोड़ी
को
सबसे
लोकप्रिय
बना
दिया,
लेकिन
इतिहास
के
हिसाब
से
इस
फ़िल्म
में
रणवीर-दीपिका
एक
साथ
स्क्रीन
पर
नहीं
दिख
सकते
थे.
लिहाज़ा
भंसाली
की
गलतियों
का
खाता
खुला.
भंसाली
चाहते
तो
रणवीर
को
रतन
सिंह
के
रोल
के
लिए
मना
कर
दीपिका
के
अपोजिट
कास्ट
कर
सकते
थे,
लेकिन
उन्होंने
दर्शको
की
डिमांड
और रणवीर की
ज़िद
के
बीच
का
एक
रास्ता
निकाला.
उन्होंने
अपने
विचारो
की
अभिव्यक्ति
का
इस्तेमाल
करते
हुए
ड्रीम
सीक्वेंस
की
तर्ज़
पर
रणवीर-दीपिका
के
बीच
प्रेम
प्रसंग
वाला
दृश्य
स्क्रिप्ट
में
जोड़
दिया.
गलती-2 अफ़वाहो और राजपूत
समाज
की
चेतावनियों
को
पब्लिसिटी
समझ
बैठे
भंसाली
ये फ़िल्म राजस्थानी
पृष्ठभूमि पर बनी
है,
तो
भंसाली
ने
ज्यादार
शूटिंग
राजस्थान
के
अलग-अलग
जगह
के
किलो
में
शूट
करने
का
मन
बनाया.
इससे
पहले
भंसाली
शूटिंग
के
लिए
राजस्थान
आते,
ख़िलजी
और
पद्मावती
के
बीच
वाले
ड्रीम
सीक्वेंस
की
ख़बर
अफवाह
की
तरह
उड़ते-उड़ते उनसें पहले
राजस्थान
पहुँच
गयी.
स्वाभाविक
रूप
से
राजपूत
समाज
को
ये
बात
पसंद
नहीं
आयी.
गौरतलब है कि भंसाली
ने
इस
ख़बर
को
सिर्फ़
एक
अफवाह
बताया,
लेकिन
ये
ख़बर
मीडिया
में
लगभग
आठ-दस
महीनो
से
थी.
भंसाली
भली-भाँती
जानते
थे
कि
इस
ख़बर
की
वजह
से
राजपूत
समाज
की
भावनाओं
को
ठेंस
पहुँचेगी,
लेकिन
उन्होंने
महीनो
तक
इस
बात
का
खंडन
करना
जरुरी
नहीं
समझा.
अक्सर
फ़िल्मो
को
ले
कर
छोटे-मोटे
विवाद
होते
रहते
है,
जिनसे
फ़िल्मो
को
फ्री
पब्लिसिटी
मिल
जाती
है.
शायद,
इसीलिए
भंसाली
ने
राजपूत
समाज
की
भावनाओ
से
ज्यादा
फ़िल्म
की
पब्लिसिटी
को
प्राथमिकता
दी,
जिसका
खामियाज़ा
उन्हें
भुगतना
पड़ा.
जब भंसाली पहले शूटिंग
शेड्यूल
के
लिए
जयपुर
आये
तो
करनी
सेना
के
जवानो
ने
फ़िल्म
के
सेट
पर
पहुँच
कर
ना
सिर्फ़
तोड़-फोड़
की
बल्कि
मौका
मिलते
ही
भंसाली
की
पिटाई
भी
कर
दी.
इसके
बाद
भंसाली
ने
ऑफिशियली
उस
ड्रीम
सीक्वेंस
के
फ़िल्म
में
होने
की
ख़बर
को
अफवाह
बताया.
अब
सवाल
ये
उठता
है
कि
भंसाली
चाहते
तो
उस
मीडिया
की
ख़बर
का
खंडन
शुरुआत
में
ही
कर
सकते
थे,
तो
हालात
आगे
जा
कर
इतने
नहीं
बिगड़ते.
गलती-3 भंसाली का राजपूत
समाज
पर
लगातार
तीसरा
हमला
ये पहला मौका नहीं
है
जब
भंसाली
ने
राजपूत
समाज
की
बेटियों
की
छवि
को
अपनी
फ़िल्मो
के
ज़रिये बिगाड़ने की
कोशिश
की
हो.
भंसाली
की
ये
लगातार
तीसरी
फ़िल्म
है
जिसमे
उन्होंने
राजपूत
समाज
को
उकसाने
की
कोशिश
की
है.
वर्ष
2013 में
आयी
उनकी
फ़िल्म
गोलियों
की
रासलीला
राम
लीला
भी
एक
राजपूत
लड़की
और
रेबारी
समाज
के
लड़के
के
बीच
प्रेम
प्रसंग
पर
आधारित
थी.
गुजरात
के
कुछ
क्षेत्रो
में
ठाकुर
और
रेबारियों
के
बीच
अनबन
रहती
है,
जिसके
चलते
तनाव
की
स्तिथि
भी
पैदा
हो
जाती
है.
फ़िल्म
के
पहले
ट्रेलर
में
ठाकुर
और
रेबारी
जैसे
शब्दों
का
इस्तेमाल
गुजरात
सरकार
को
भी
रास
नहीं
आया,
सरकार
और
सेंसर
बोर्ड
की
सूझ-बुझ
ने
तुरंत
कार्यवाही
करके
फ़िल्म
में
से
ठाकुर
और
रेबारी
शब्दों
को
हटवाया,
जिन्हे
बाद
में
सनेड़ा
और
रजाड़ी
कर
दिया
गया.
यहाँ भंसाली के साथ-साथ
राजस्थान
सरकार
भी
जिम्मेदार
है,
जिन्होंने
शुरुआत
में
इस
मामले
को
ना
तो
गंभीरता
से
लिया
और
अब
बात
बहुत
ज्यादा
आगे
बड़
जाने
और
प्रदेश
में
जल्द
होने वाले उपचुनावों के चलते हश्तक्षेप
किया
है.
जिस
तरह
की
राम
लीला
फ़िल्म
की
कहानी
है,
यदि
समय
रहते
उसमे
सुधार
नहीं
किया
होता
तो
गुजरात
भी
उसी
तरह
जलता
जिस
तरह
आज
राजस्थान
जल
रहा
है.
उसके बाद आयी वर्ष
2015 में
भंसाली
की
फ़िल्म
बाजीराव-मस्तानी
जिसमे
दीपिका
ने
मस्तानी
का
रोल
निभाया
तो
बाजीराव
के
रोल
में
दिखे
रणवीर
सिंह.
पेशवा
बाजीराव
के
जीवन
पर
बनी
इस
फ़िल्म
में
जिस
तरह
से
भंसाली
ने
बाजीराव
को
एक
जुनूनी
प्रेमी
की
तरह
दर्शाया
है
ये
अपने
आप
में
एक
विवाद
है.
दूसरी
ओर
दीपिका
को
फ़िल्म
में
कभी
राजपूत
बइसा
तो
कभी
मुसलमान
के
रूप
में
दिखाया.
हालांकि
फ़िल्म
में
दिखाया
गया
है
कि
मस्तानी
बुंदेलखंड
के
राजपूत
राजा
और
उनकी
मुस्लिम
महारानी
की
बेटी
थी,
लेकिन
पुराने
ज़माने
से
ही
भारत
में
बेटियाँ
अपने
पिता
के
ही
धर्म
का
पालन
करती
आयी
है.
अब पद्मावती तीसरी
फ़िल्म
है
जिसमे
भंसाली
ने
राजपुताना
पृष्ठभूमि
से
जुड़े
किरदारों
को
तोड़
मरोड़
कर
ना
सिर्फ़
पेश
करने की
कोशिश
की
है,
बल्कि
इस
बार
इतिहास
बदलने
का
भी
प्रयास
किया
है.
राजपूत
समाज
पर
बिना
वजह
भंसाली
ने
अपनी
फ़िल्मो
के
ज़रिये
प्रहार
किया
है,
जिसे
राजपूत
समाज
ने
बहुत
सालो
तक
नज़रअंदाज़
भी
किया.
लेकिन
जब
पानी सिर के
ऊपर
से
निकल
गया
तो
समाज
ने
अपनी चुपी
तोड़
कर
भंसाली
को
मुँह
तोड़
जवाब
दिया.
भंसाली से कुछ सवाल
लगातार बार-बार राजपूत
समाज
से
जुड़े
किरदारों
को
ले
कर
फ़िल्मे
बनाने
की
कोई
ख़ास
वजह?
क्या ये सच है
आपने
फ़िल्म
की
स्क्रिप्ट
में
सच-मुच
ख़िलजी
और
पद्मावती
के
बीच
प्रेम
प्रसंग
वाला
ड्रीम
सीक्वेंस
जोड़ा
था,
जिसे
बाद
में
विवाद
के
चलते
आपने
चुपचाप
हटा
दिया?
ख़िलजी और पद्मावती
के
बीच
प्रेम
प्रसंग
वाले
ड्रीम
सीक्वेंस
वाली
ख़बर
झूठी
थी,
तो
समय
रहते
उस
अफवाह
का
खंडन
क्यों
नहीं
किया?
दीपिका-रणवीर की लोकप्रिय
जोड़ी
को
परदे
पे
दिखाना
ही
चाहते
थे
तो
रणवीर
को
आपने
रावल
रतन
सिंह
का
रोल
क्यों
नहीं
दिया?
जयपुर में शूटिंग
के
दौरान
हुए
विवाद
के
बाद
आपने
राजपूत
समाज
से
सुलह
करने
का
प्रयास
क्यों
नहीं
किया?
क्या ये सच है
कि
फ़िल्म
पर
हो
रहे
विवाद
को
आपने
फ़िल्म
की
फ्री
पब्लिसिटी
की
तरह
देख
रहे
थे?
विवाद आपकी उम्मीद
से
ज्यादा
बढ़
जाने
के
कारण
ही
आपको
स्पष्टीकरण
देने
पर
मज़बूर
होना
पड़ा?
आखरी शब्द
फ़िल्म पर उठे विवाद
में
सभी
को
राजपूतो
का
गुस्सा
तो
नज़र
आ
रहा
है,
लेकिन
किसी
ने
भी
विवाद
के
पीछे
का
सच
जानने
की
कोशिश
नहीं
की.
बिना
सोचे
समझे
लोगो
ने
भ्रमित
हो
कर
राजपूत
समाज
को
निशाना
बनाया.
वो
युवा
जिन्होंने
कभी
इतिहास
नहीं
पढ़ा
और
जिन्हे
महारानी
पद्मिनी
की
त्याग
और
बलिदान
का
ज्ञान
भी
नहीं,
वे
बढ़-चढ़
कर
सोशल
मीडिया
के
ज़रिये
भंसाली
को
समर्थन
दे
रहे
है.
किसी
ने
इस
बात
पर
गौर
ही
नहीं
किया
कि
राम
लीला
से
ले
कर
फ़िल्म
पद्मावती
तक
भंसाली
ने
क्यों
राजपूत
महिलाओ
को
महफ़िलो
में
नचवाया?
सबसे
बड़ा
सच
आज
अगर
कुछ
है
तो
ये
कि
संजय
लीला
भंसाली
ने
स्वार्थी
हो
कर
ना
सिर्फ़
इस
मामले
में
आग
लगायी
है
बल्कि
समय-समय
पर
आग
में
घी
डालने
का
काम
भी
किया
है.
भंसाली
चाहते
तो
ये
विवाद
उत्पन्न
ही
नहीं
होता.
लेकिन पुरे
विवाद
से
फ़िल्म
को
मिल
रही
फ्री
की
पब्लिसिटी
का
वो
लुफ़्त
उठाते
रहे.
भंसाली
को
खुद
इस
बात
का
आभास
ही
नहीं
था
कि
मामला
इतना
आगे
बढ़
जायेगा.
जोश-जोश
में
राजपूत
समाज
के
प्रतिनिधियों
के
ब्यान
भी
उनके
ख़िलाफ़
चले
गए,
जिनको
मिर्च-मसाला
लगा
कर
मीडिया
ने
भी
खूब
उछाला.
मीडिया
ने
अपनी
तरफ
से
पूरी
कोशिश
की
कि
जनता
को
मुद्दे
से
भटका
कर
राजपूतो
द्वारा
किये
जा
रहे
उग्र
प्रदर्शन
और
विरोध
के
ख़िलाफ़
भड़काया
जाये.
पर
कहीं
ना
कहीं
ये
सच
है
कि
राजपूतो
का
इस
फ़िल्म
के
लिए
विरोध
का
मूल
आधार
है
महासती
पद्मावती
का
सम्मान
और
इस
बात
का
एहसास
सरकार
को
भी
है.
मध्य-प्रदेश और पंजाब
में
फ़िल्म
के
बन
की
घोषणा
कर
दी
गयी
है.
राजस्थान
में
आनदंपाल
एनकाउंटर
केस
के
बाद
राजपूत
समाज
पहले
से
ही
सरकार
से
नाराज़
है,
प्रदेश
में
सरकार
के
सामने
पहले
उपचुनाव
फिर
अगले
वर्ष
विधानसभा चुनाव की
चुनौती
है.
ऐसे
में
माहौल
यहाँ
भी
राजपूत
समाज
के
पक्ष
में
और
फ़िल्म
के
ख़िलाफ़
बनता
नज़र
आ
रहा
है.
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